(3).
एक कहावत है...अगर किसी को बर्बाद करना हो तो उसे पहले तो मोहब्बत करा दो...अधिक बर्बाद करना हो तो नशे की लत पकङा दो...इतने में भी बात न बने तो उसे जुआ खेलना सीखा दो...अंतिम हथियार ये कि उसे नेता बना दो। हम बस जुआरी न थे...बाक़ी सारे गुण वो भी थोक में...बर्बाद तो होना ही था। पर नहीं हुए...हमें हमारी मोहब्बत ने बङे शिद्दत से बचाए रखा। युनिवर्सिटी के हर चुनावी मौसम के बाद हमारे आर्थिक मंदी का दौर चला करता था...घर में बिना बताए लौंडा नेता जो बन रहा था...तो चुनावों में की गई लेनदारियाँ मौनसून के जाते ही देनदारियाँ बन जाया करती थी। अब तो मुफ़लिसी में आटा गीला करने को हमारे धुएँ में उङते फ़िक्र का शौक ही काफ़ी था...उपर से मंदिरों(मदिरा भी पढ़ सकते हैं :p) में किए जानेवाले गुप्तदान भी...मतलब ये कि हम 1930 वाला जर्मनी हो जाया करते थे। दो महीनों से होस्टल का किराया नहीं दिया गया था और उससे भी बङी टेंशन ये कि खाना बनाने वाली आंटी के भी पैसे बाक़ी थे...तब हम होस्टल में रहते थे... आर्थिक स्थिति ने उनकी छंटनी का रास्ता तैयार कर दिया पर इसके लिए भी दो महीने का उनका बकाया चुकाने की समस्या। पगली को साफ़-साफ़ तो न कह सके...आखिर अंदर बैठे मर्द का इगो हर्ट हो जा रहा था...फ़िर भी उसे मोहब्बत के बेतार से अंदाज़ा लग ही गया। सुबह-सुबह उसका बुलावा...पाॅकेट में रिंगरोड तक पहुँचने लायक भी पैसे नहीं...खैर, अख्तर पान वाले से सौ रूपये और एक क्लासिक माइल्ड लेकर निकला गया। वहाँ कुछ देर बातें हुई फ़िर हम वापस घर को लौटे...परेशान थे सो आते ही बिस्तर पर औंधा हो गए...कुछ देर बाद उठे तो शर्ट के पाॅकेट में लाल-पीले कागज़ों की झलक मिली। स्थिति भिखारियों वाली...अचानक एक हजार के और दो पाँच सौ के नोट...तुरंत उसे फोन करके डाँटा गया पर उपरी मन से...उन नोटों की क़सम अंदर से बेहद शांति और ठंढक मिल रही थी।
गुजरते महीनों के साथ-साथ मौसम भी बदलता जा रहा था...सितंबर अक्टूबर के रास्ते होता हुवा नवंबर में तब्दील होने को बेक़रार था...पर हमारी आर्थिक मंदी अभी जाने को तैयार न थी। त्योहारों का अंतहीन सिलसिला शुरू हो चुका था...धनतेरस की पूर्व संध्या...पाॅकेट और एटीएम बिलकुल खाली...खैर भारतीय जुगाङ टेक्नालॉजी से मुद्रा जमा किया गया और मदिरा को चढ़ावा पहुँचा दिया गया। अपने प्रिय मंदिर को दान करने में हमको कलयुगी कर्ण समझिए...सो खाने की भी परवाह न किए और दौर-ए-जाम में मस्त हो गए। देर रात तक पगली हमारे फोन के इंतज़ार में जागती रही पर हम ज़हर से गला तर करके भोलेनाथ हो जाने में व्यस्त...तकरीबन 11 बजे पगली के फोन से थोङा खलल पङा तो काॅलबैक की परंपरा का पालन किया गया। दुनिया जानती है कि जब पाॅकेट ठंढा होता है तब मन गरमाया रहता है सो उसे पहली बार इतना भीषण और वो भी बेवज़ह डाँटा गया...और फ़िर फोन काटके हम बिस्तर के ठौर में पहुँचे। सुबह दरवाजा पीटे जाने की आवाज़ से जागे...दरवाजा खोले तो पगली को खङा पाया...हम फ़िर भङक पङे...पर वो बेचारी रात में हमारे भूखे सो जाने के खबर के कारण खाना बनाकर लाई थी...वो भी तब जब उसका घर से निकल पाना बहुत मुश्किल था। प्यार से डाँटकर पगली ने अपने हाथों से खाना खिलाया और अपना ख्याल रखने की ताक़ीद कर घर को गई। शाम जब वो अपने घरवालों के साथ धनतेरस के शाॅपिंग को गई तो छुप-छुपाके हमारे लिए चम्मचों का एक सेट खरीद लाई।
आज भी हमने उन चम्मचों को जला खाना तक स्वादिष्ट करते पाया है और उस टिफिन को अपने उपेक्षा पर रोते पाया है...ये भी हमारी मोहब्बत की धरोहरों में से है।
राजकोट की सर्दी के प्रचंड होते-होते पाॅकेट गरमाने लगा था...वज़ह अहमदाबाद से बङे भाई का भेजा जाने वाला परसाद...सो आशिक़ी अपने मस्ततम दौर में। काॅलेज का इंटरनल इधर खत्म हुवा और उधर धुआँधार तारीख़ों का दौर शुरू हुवा। तब हम पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए दिल्ली जाने के मूड में थे...सो अहमदाबाद वाले भाई के आदेश से टाॅफेल का फाॅर्म भरा गया...परीक्षा के लिए कई तारीख़ों का विकल्प मिला था...पर हमने चुना 20 नवम्बर...हमारा जन्मदिन। एक तो बङका अंग्रेजी परीक्षा और उपर से हमारा जन्मदिन...स्वाभाविक था पगली का उसदिन पागलपन के चरम पर पहुँच जाना। अमीन मार्ग मिला गया...वहाँ से ऑटो लेकर चौधरी हाईस्कूल....हम अंदर गये परीक्षा देने और पगली वहीं बाहर हमारा इंतज़ार करते रही। खैर पेपर अच्छे से निपटा के बाहर निकला गया...पगली को वहीं देखके हम एकदम हैरान पर बेतरह खुश भी। अब वहाँ से काॅफी हाऊस...केक-वेक काटा गया...जन्मदिन एकदम चउकस टाइप हैप्पी-हैप्पी।
जन्मदिन तो बहुत मनाया गया हमारा...शैंपेन से लेकर खून तक भी बहा...पर ऐसी खुशी न मिल सका कभी...कुछ ही दिन बाद आया टाॅफेल का रिजल्ट हमें फ़िर से ताज़ा और पगली को और यादगार बना गया।
शायद वो पगली का प्यार ही था जो हमें तब राजकोट और गुजरात छोङकर न जाने दिया...पर अफ़सोस किसको है!
(जारी...)
- Raj Vasani. (મોરી ચા.) 😊😉
હ્ર્દય વલોવી ને રાખી દીધું ભાઈ...સુપર્બં રાઇટિંગ...👍
ReplyDeleteવધુ ઊંડાણ પણ ધાતક નિવડે છે....
Deleteઆટલો ઇશારો પુરતો છે...
બાય ધ વે... થેંક્યું... 😊😊
This comment has been removed by the author.
Deleteto good yaar
ReplyDeleteThanks.... yaar....!!
DeleteThanks.... yaar....!!
DeleteWàaaaààaaaaah!!!!!!
ReplyDeletethanks... pankaj bhai.... 😊
Deletethanks... pankaj bhai.... 😊
DeleteWàaaaààaaaaah!!!!!!
ReplyDeleteMasstt pagli... �� �� heart touching....
ReplyDeleteहेहेहे... प्यारी... इतनी दिल्लगी भी घातक है हमारे लिए... 😜😉
Deleteहेहेहे... प्यारी... इतनी दिल्लगी भी घातक है हमारे लिए... 😜😉
DeleteMasstt pagli... �� �� heart touching....
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