Monday, 18 April 2016

गोधरा, गुजरात 2002... (મોરી ચા.)

गोधरा, गुजरात 2002।

यही पहचान है मोदी जी की और इसी लिए उसको हमने प्रधानमन्त्री बनाया है।

मोदी जी गोधरा की रोटी खा रहे है और हम उन्हें घी लगा कर रोटी उसी के लिए खिला रहे है।

हमने नरेंद्र मोदी को मोदी जी बनाया है और हम ही है जो 2019 में उन्हें फिर नरेंद्र मोदी बना देंगे।

ना ना ना! यह सारे उदगार बिल्कुल भी मेरे नही है, यह सारे उदगार मोदी जी के कुछ कट्टर समर्थको के हैं। हाँ यह अलग बात है की शब्द मेरे है लेकिन सोशल मिडिया पर मैंने कुछ लोगों को यह कहते  हुए देखा है। मैंने अभी तक यही कोशिश की है की इन उदगारों को, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानते हुए उस पर कोई टिप्पणी नही की जाए लेकिन अब मुझे लगता है की लोगों को एक यथार्थ से परिचय करा दिया जाना चाहिए ताकि भारत के भविष्य में होने वाली घटनाओ का वो लोग कोई संकीर्ण आंकलन करने की भूल न करे।

आप लोग एक बात अपने दिमाग से बड़े आराम से निकाल दे की गोधरा के कारण नरेंद्र मोदी, मोदी जी बने है। हाँ यह अलग बात है कुछ लोगो ने 2002 को देख कर नरेंद्र मोदी को प्रधानमन्त्री के रूप में देखने का सपना देखा था। हकीकत यह है की गोधरा में 57 कारसेवको की हत्या के आक्रोश में गुजरात में जो दंगे हुए थे, जिसमे मुसलमान के साथ हिन्दू भी मारे गए थे। उस वक्त केंद्र में अटलबिहारी बाजपेयी जी प्रधानमन्त्री थे जो अपनी उदारवादी छवि को लेकर बड़े सचेत थे। शुरू में जब कांग्रेस और अन्य सेकुलर जमात ने गुजरात के दंगो के लिए मोदी जी पर दोषारोपण लगाया था तब उन लोगो का असली निशाना दिल्ली में अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार थी। वो लोग, इस दंगे का इस्तमाल, बीजेपी को मुस्लिम विरोधी और एनडीए सरकार को असफल सिद्ध करने के लिए कर रहे थे। उन लोगों ने, बाजपेयी जी के करीबी लोगों के माध्यम से यह दबाव बनाया की गुजरात के कारण उनकी छवि खराब हो रही है और इस लिए मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाना चाहिए। बाजपेयी जी भी अपनी सेकुलर छवि के प्रति इतना सचेत थे की सारी सच्चाई जानने के बाद भी वो मोदी से हटाने को तैयार हो गए थे। लेकिन उस वक्त, बाजपेयी जी की इच्छा के विरुद्ध पूरा संघटन मोदी जी के पक्ष में खड़ा हो गया था और वह मुख्यमंत्री बने रहे थे।

इसी निर्णय के बाद से ही सारी मीडिया , वामपंथीयों बुद्धजीवीयों और मुस्लिम वोट बैंक पर जीने वाले दलो ने मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू कर दिया था। उस दुष्प्रचार का असर यह है की जिस मीडिया  के लोगों  को, लोग आज "प्रेस्टीटूटेस" कह कर बुलाते है, वहीं लोग उनकी पिछले 14 साल से चले आरहे झूठ पर विश्वास कर रहे है और उसी कारण से उन्होंने नरेंद्र मोदी को मोदी जी बनाया है यह मान कर बैठे गए है।

क्या आप लोगों ने कभी यह सोंचा है की 2002 से ही क्यों पूरी मीडिया , विदेशी धन से चलने वाले एनजीओ और सेकुलर जमात के प्रचार तन्त्र , एक राज्य के, पहली बार बने मुख्यमंत्री का राजिनैतिक जीवन समाप्त करने के लिए इतनी शिद्दत से लगा हुआ है?

क्या यह लोग इतने दूरदर्शी थे की उन्हें 2002 में ही उन्हें मालूम था की यह नरेंद्र मोदी नाम का व्यक्ति 2014 में कांग्रेस को खत्म कर देगा?

क्या 2002 में इन सबको यह एहसास था की मुस्लिम वोट के बिना भी सरकारे बन सकती है?

ऊपर के यही तीन प्रश्न सिद्ध करते है की नरेंद्र मोदी के विरोध की कहानी कुछ और है जिस पर न सेकुलर मण्डली बोलती है और न ही स्वयं बीजेपी के लोग स्वीकार करते है।

कांग्रेस, मीडिया और अन्य राजिनैतिक दलो के लिए गोधरा,गुजरात एक ढाल है जिसके पीछे यह लोग अपने मोदी विरोध के कारणों को छुपाने में बेहद सफल रहे है। क्या आपको याद है की मोदी की गुजरात में मुख्यमंत्री बनाया गया था तब गुजरात का क्या हाल था? 2001 में जब केशुभाई पटेल को हटाकर, मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब बीजेपी की सरकार भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता में डूबी हुयी थी और भुज में आये भूकम्प से बनी परिस्थितयों को संभालने में निष्फल रही थी। इन परिस्थितयों में नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो उनकी कार्यशैली का सबसे पहला शिकार भ्रष्टाचार हुयी थी। जिस दिन से कुर्सी पर बैठे थे उस दिन से जितने दलाल और लोबईस्ट थे उनकी दुकाने उजड़ गयी थी। गुजरात एक व्यापारी समाज का राज्य है जहाँ, धंदे में सब चलता था, जिसको खत्म कर दिया गया था।

इन दलालो और लोबईस्ट में मीडिया के पत्रकार और उनके मालिक भी थे। कांग्रेसी संस्कृति में, यह वर्ग हमेशा से पल्लवित हुआ था, जिस पर रोक लग गयी थी। उनकी कार्यशैली का दूसरा शिकार गुजरात के अवैध धंदे थे, जिसमे अवैध शराब और स्मगलिंग मुख्य थी। इस अवैध धंदे में मुस्लिम समुदाय का अच्छा दखल था, जो नए शासन में चरमरा गया था। गुजरात में जो मोदी जी के तेवर दिख रहे थे उससे गुजरात की कांग्रेस, बीजेपी के मोदी विरोधी और बड़े दलाल तीनो ही त्रस्त थे, जिसके कारण गुजरात में अशांति फ़ैलाने के लिए गोधरा की घटना को अंजाम दिया गया था। क्योंकि कांग्रेस के लोग उसमे शामिल थे इसलिए मीडिया ने शुरू से इस बात को दबा दिया था। जब इस घटना के आक्रोश में दंगे भड़के तब मोदी ने दंगे रोकने के लिए अपनी पुलिस को पूरी छूट  दी थी, जिसका परिणाम यह हुआ की जिन मुहल्लों या इलाको में पहले पुलिस घुसने की हिम्मत नही करती थी, वो वहां पहुंची और सख्ती से दंगे रोके गए थे।

गुजरात में पुलिस का उन इलाको में पहुचना जहाँ कभी पुलिस का कानून नही चलता था, उसने वहां के घेटो चरित्र को चटका दिया था जिससे पहली बार मुस्लिम समाज के मानस(साइकि) को तोड़ दिया था। इसका असर पुरे भारत के मुस्लिम समाज पर पड़ा  क्योंकि स्वतंत्रता के बाद पहली बार उनकी मनमानी पर लगाम लगी थी, जिसे कांग्रेस के बढ़ावे में उन्होंने अपना अधिकार मान लिया था।

गुजरात में नरेंद्र मोदी के आने के एक वर्ष में जो कुछ हुआ था वह भारत की मौजूदा राजिनैतिक वातावरण के विरुद्ध था। जिस राजिनैतिक व्यवस्था और दलाल संस्कृति में नेता, नौकरशाह और मीडिया जीने के अभ्यस्त थे और उसमे फलफूल रहे थे, उसमे किसी को भी नरेंद्र मोदी द्वारा शासन चलाने का तरीका स्वीकार्य नही था।

इन सबको एहसास था की ऐसे आदमी का राजीनीति में लम्बे समय तक रहना इन सभी के लिए धातक है। वे लोग इस बात से भी मानसिक अवसाद में थे की नरेंद्र मोदी की शख्सियत के राजिनीतिज्ञ को वह नही जानते है और यही इनकी हीनता बन गयी जो बाद में घृणा के रूप में आज हम सबको दिखती है।

मैं मानता हूँ मोदी को प्रधानमन्त्री बनाने में आपके योगदान देने के अपने कारण होंगे लेकिन सिर्फ गोधरा, गुजरात 2002 को कारण मत बनाइये।

"भविष्य उज्जवल है लेकिन सारी अभिलाषाएं, आपके हिसाब से, आपकी प्राथिमकता के आधार पर पूरी होंगी यह उम्मीद मोदी जी से रखना छोड़ दीजिये"।

:- Raj Vasani. (મોરી ચા.) 😊

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