Saturday, 12 March 2016

"અદીતી ની કલમે થી"....

"क्यों बे हराम के बीज......!! ऊपर क्या तेरी माँ खड़ी है जो घूर रहा है......"
"ऐ बाई !! समझा ले साली को..... बहुत उड़ रही है ये......!!" तेजपाल ने चाय का गिलास रख डंडा हाथ में उठा लिया, "ये लट्ठ देख रही है न.... मार मार के भूत बना दूंगा हरामजादी का अगर गुड्डू को गाली दी तो......"
"हवलदार है, हवलदार की औकात में रह तेजपाल...!! तेरे डी.सी.पी. को एक फोन मारा न.... कुत्ते की तरह तलवे चाटेगा मेरे....."
"रुक साली.... अभी आता हूँ ऊपर......" तेजपाल बढ़ने ही लगा था कि गुड्डू ने आकर उसका बाजू पकड़ कर रोक लिया.... "जाने दो न साहब !! वो तो है ही नीच, बदज़ुबान...... रोज़ का है उसका तो !! आप क्यों मेरे लफ़ड़े में पड़ते हैं........"
"तू सीधा है गुड्डू इसीलिए तेरे सर हो जाती है ये साली......" डंडा दीवार के सहारे टिका कर, स्टूल पर बैठते हुए तेजपाल ने कहा.
=================================
जी. बी. रोड की देह-मण्डी में रोज़ाना जाने वालों में ये मशहूर था......... दिल्ली में दो ही चीज़ करारी हैं, या तो अमीना का जिस्म- या गुड्डू की चाय !!
लोग जितना अमीना के जिस्म के दीवाने थे, अमीना के बर्ताव और रुतबे से उतना ही खौफ़ खाते थे. अमीना बाकी धंधेवालियों से ज़्यादा पढ़ी लिखी भी थी, और साथ ही बला की सुन्दर....... जिसने उसे सबसे ज़्यादा महंगा बना दिया था. नेता-बिज़नेस मैन-बड़े सरकारी नौकर सबकी पहली पसंद थी अमीना. इसी वजह से जोड़-तोड़ के लिए रिश्वत और पैसे से ज़्यादा मांग अमीना की थी. अमीना के यहां आने-जाने वालों के हिसाब से आसपास कोई ढंग का चायवाला नहीं था. बड़ी बाई, जिस ने पैसों के लिए मजबूर अमीना को अपने यहां रखा था, उसने इलाके के हवलदार तेजपाल को कोठे के नीचे कहीं एक बढ़िया चाय का खोखा खुलवाने को कहा था.
यूँ ही एक बार जब तेजपाल ड्यूटी ख़त्म कर के घर जा रहा था तब उसे रास्ते में एक बीस-बाइस साल का लड़का सड़क किनारे बैठकर रोता दिखा. तेजपाल लड़के के पास गया..... देखा तो उसके माथे पे चोट थी, गाल पर उँगलियाँ छपी थीं और कपड़े फटे थे..... "खड़ा हो भई !! क्या बात है......"
लड़का और सहम गया, शायद तेजपाल की वर्दी देखकर.
"अरे खड़ा हो..... क्या नाम है तेरा ?", लड़का घबराता हुआ खड़ा हुआ, और शर्ट की आस्तीन से आंसू पोंछता हुआ बोला, "साब..... गुड्डू !!"
"क्या करता है, क्यों रो रहा है यहां बैठ के....?"
"चाय बेच रहा था साब..... पीछे वो जो दो चाय की दुकानें हैं, उन्होंने मारा. कहते हैं उनका इलाका है..... उनसे पूछे बिना कोई और चाय नहीं बेच सकता. मेरी केतली और सामान भी रख लिया साब......."
"कहाँ रहता है ??"
"सात नंबर में साब....."
"कब्रिस्तान में ??"
"हाँ साब....."
तेजपाल को बड़ी बाई की बात याद आ गई. और उसने ये भी सोचा कि खुद दुकान लगवाएगा तो कमाई भी खूब होगी...... इलाका अपना है तो कमीशन भी नहीं देना होगा......
"चाय का खोखा लगाएगा ?? सामान मैं करवा दूंगा जुगाड़......... बोल ??"
"हाँ साब...... कमाने ही तो निकला था घर से !!"
"ठीक है फ़िर...... कल सुबह बासठ नंबर के नीचे मिलियो दस बजे !! मेरा नाम तेजपाल है, कोई दिक्कत हो तो मेरा नाम ले लियो......"
और अगले दिन से बासठ नंबर के नीचे गुड्डू की अपनी चाय की दुकान थी. खूब कमाई थी बिक्री का कोई हिसाब न था.
=================================
गुड्डू चाय बनाते-बनाते एक रिक्शेवाले से बात कर रहा था. तभी ऊपर कोठे की सीढ़ियों से एक आदमी लुढ़कता हुआ नीचे आ गिरा...... और उसके पीछे पीछे लाठी लिए दो मुस्टंडे. उन लंबे चौड़े पट्ठों ने उस आदमी पर जी भर के लाठी भाँजी..... ऊपर से एक लड़की मुंह भर-भर के गन्दी गालियां बके जा रही थी. गुड्डू ने ऊपर देखा, और तकता रह गया....... उसने कभी ऐसी लड़की नहीं देखी थी. दूध से भी चिट्टी.... बाल हल्के-हल्के घुमावदार, लम्बे और बेहद काले...... बैलों जैसी बड़ी बड़ी आँखें..... उँगलियों पर सोने की अंगूठियां थीं और गले में सोने की लटें.... उसे ये लड़की एकदम उस देवी की फ़ोटो जैसी लगी, जो कैलेण्डर उसके घर में टंगा था..... जिसे वो रोज़ नहाने के बाद अगरबत्ती दिखाता था.
लेकिन तेजपाल तो कहता था कि ऊपर बस रण्डियाँ रहती हैं......!!! ये सवाल उसके दिमाग में घूमने लगा. लड़की ने एक ज़रा सी नज़र गुड्डू की तरफ़ देखा..... गुड्डू ने घबरा कर आँखें वापिस चाय के बर्तन में धंसा लीं और उसमें चायछन्नी से चाय फेंटने लगा. सब कुछ कुल मिलाकर दो मिनट में हुआ.... और फिर सब वैसा ही जैसा हमेशा रहता था !! गुज़रते रिक्शे... सड़क से बासठ नंबर की खिड़कियाँ देखते लड़के.... ऊपर खिड़कियों से इशारे करती रण्डियाँ...... नीचे मशीनों के पुर्ज़े बेचते दुकानदार... और आसपास ग्राहकों को खोजते दलाल. चाय फेंटने के बाद गुड्डू ने देखा, रिक्शेवाला उन दो में से एक मुस्टंडे से बात कर रहा था. मुस्टंडों के ऊपर जाते ही गुड्डू ने रिक्शेवाले को पास बुलाया..... "क्यों राजाराम !! क्या मामला है ??"
"वो ऊपर लड़की दिखी ??" रिक्शेवाले ने तमाखू रगड़ते हुए कहा.
"हाँ" गुड्डू ने एक नज़र से फिर ऊपर देखा, वो नहीं थी अब, "वही न...... जो गाली बके थी ?!"
"हाँ रे, वही !! अमीना नाम है उसका...... यहां का सबसे कर्रा माल है वो लला !! जितनी सुन्दर है उतनी ही नकचढ़ी " और उसने हथेली का तमाखू गुड्डू की तरफ़ बढ़ाया. "ना, मैं नहीं...."
"तू तमाखू नहीं खाता ???"
"नहीं बे...." गुड्डू ने चाय चूल्हे से उतार ली और छानने लगा, "हाँ तो, माजरा तो बता राजाराम...."
राजाराम निचला होंठ उंगलियो से पकड़ के बाहर किए, तमाखू बिठा रहा था..... "जो पिटा, वो वकील था..... कोरट का !!"
"बाप रे..!!! वकील की पिटाई ??!!"
"हाँ ! अमीना के होंठ चूमने की कोशिश कर रहा था..... वो चिल्ला पड़ी. पहलवानों ने उठा के फेंक दिया बाहर."
"ये अमीना...... करती क्या है ऊपर??" सवाल सुनते ही रिक्शेवाला ठहाका मार कर हंसने लगा.
"अबे लल्लू.... भूल गया ??!! ऊपर रण्डियाँ ही रहती हैं....." उसने हँसते हुए रिक्शे पर पैडल मारे और चल दिया. गुड्डू एक बार ऊपर देखता, और एक बार जाता हुआ रिक्शा.......
==================================
"क्या हुआ मेरी बच्ची..... क्यों मुए चायवाले पर अपनी ज़ुबान गन्दी करती है !!" बड़ी बाई ने कंधे से पकड़कर अमीना को अंदर ले जाते हुए कहा.
"मौसी पता है न तुझे...... मेरी मजबूरी ने मुझे धन्धे में उतारा है !!" अमीना आईने के सामने जा कर बैठ कई, और अपनी ही नज़रों से नज़रें मिला कर बैठ गई....... फिर उसने आईने में पीछे बैठी बड़ी बाई को देखा, "आइना गवाह है मौसी, जिसम ही बेचा है...... रूह नहीं. इसी लिए किसी हराम के जने को कभी चेहरा नहीं चूमने दिया."
"सो तो ठीक है...... मगर ये चायवाले, रिक्शेवाले इनपे क्या बरसना बिटिया !! ये भी तो हमारी ही तरह तक़दीर के पीटे हैं...... ये क्या करेंगे, दो नज़र आँख भरते हैं बस हमें देख कर "
"नहीं मौसी !! मुझे इसकी नज़र चुभती है..... जाने क्यों......" उसकी बात सुनकर बड़ी बाई ज़ोर से हँसने लगी..... "न जाने कब बड़ी होगी मेरी बच्ची !!"
================================
"आओ पहलवान भाई !! सलाम...." बड़ी बाई के दोनों मुस्टंडों में से एक गुड्डू की दुकान पर था "कितनी चाय लगाऊं ??"
जब भी ऊपर कोई आता तो उन दोनों पहलवान लड़कों में से ही कोई एक चाय लेने नीचे आता था, इसलिए उसका नीचे आना कोई नई बात नहीं थी.
"ऊपर चल गुड्डू...." सुनते ही गुड्डू के होश फ़ाख़्ता हो गए. वह मन ही मन जितने भगवानों को याद कर सकता था किया, और अपने कांपते जिस्म को किसी तरह समेटकर बोला "क्या हुआ बड़े भाई, मुझसे कोई गलती हो गई क्या ??"
मुस्टण्डा गुड्डू के कंधे पर हाथ रखते हुए बोलने ही वाला था कि...... उसके हाथ उठाने पर गुड्डू ने आँखें मीच कर अपने हाथ गाल के सामने कर लिए मानों उसे तमाचा पड़ने वाला हो. पहलवान की हँसी छूट गई...... "डरता क्यों है मेरी जान, चल ऊपर...... अमीना ने बुलाया है"
सीढ़ी के सत्रह पायदान गुड्डू ने गिन-गिन कर पार किए..... और हर पायदान पर उसे एक-एक करके वो गालियाँ याद आ रहीं थी जो अमीना दिया करती थी. पहलवान बाहर ही रुक गया. उसने दरवाज़ा खोला, और ग़ुलाबी रंग के खूबसूरत परदे को हटाते हुए उसने अमीना को आवाज़ देकर गुड्डू को अंदर भेज दिया...... और बाहर से दरवाज़े का पल्ला भिड़ा दिया.
"आ बैठ....!!" गुड्डू ने अमीना की आवाज़ तो पहले भी सुनी थी, मगर ये लहज़ा उसके लिए नया था. वो अभी तक बैठा फ़र्श पर बिछे कालीन को ही निहार रहा था, और पैर के अंगूठे को गोल-गोल घुमाकर उसकी नरमाई महसूस कर रहा था.
"भले ऊँगली जल जाए, चाय उबल कर फ़ैल जाए..... तब तो तेरी नज़रें मेरे जंगले के अंदर घुसी जाती हैं, आज सामने हूँ तो नज़रें ज़मीन में घुसाए बैठा है....." अबकी बार अमीना की आवाज़ कमोबेश रूखी थी, और उसमें तंज था.
"वो मैं..... मैं....." गुड्डू की आवाज़ निकलते निकलते रह गई.
"मिमियाता क्या है, बोल न..... बता, क्या चाहता है तू !! क्यों घूरता रहता है मुझे....." अमीना की आवाज़ में गुस्सा था, बेचैनी थी, अजीब सी बेचैनी.... "बोल आज, आखिर चाहता क्या है.... अरे तुम सब मर्द एक ही हो !!!" वो तेज़ क़दमों से चल के गुड्डू के पास आ गई, वो घबरा कर उठ खड़ा हुआ और उसका चेहरा देखने लगा. वो गुस्से से काँप रही थी, और उसके दूधिया गाल रंगीन हो गए थे....... ग़ुलाबी नहीं, अनारी लाल !!
"बोल क्या परेशानी है !! पैसे नहीं हैं ??" अमीना ने गुड्डू का गिरेबान पकड़ लिया... "तुझ पर भीख समझ कर ये रहम रहेगा मेरा...... जा, नहीं मांगती तुझसे पैसे !! कर ले अब जो करना चाहता है....." और अमीना ने अपनी साड़ी का पल्लू हटाकर गुड्डू के हाथ पकड़े, और अपने सीने पर रख दिए.
वो कमरा सन्नाटे से भर गया. साँसों तक का शोर नहीं था. उस खामोशी को बस कभी कभार नीचे सड़क से गुज़रती गाड़ी का हॉर्न, काट देता था. अमीना गुड्डू की आँखें देखती रही...... और गुड्डू उसका चेहरा !! उसके हाथ अब भी वहीँ थे अमीना की छाती पर. गुड्डू के होठों ने उस सन्नाटे को तोड़ा, "तू बहुत सुन्दर है अमीना....."
अमीना के होंठ ज़रा से खुले, और गुस्से से रूखी हो चली उसकी लाल आँखों में ज़रा सी नमी भर गई. उसने कई दफ़े अपने सीने पर रखे हाथों का भार महसूस किया था, और वो हाथ उसके सीने से नीचे कमर की तरफ़ बढ़ते थे..... ये पहली बार हुआ कि कोई हाथ उसके सीने से हट के उसके गालों पर चला आया था. उसने उन हाथों को हटाया नहीं...... बस गुड्डू की आँखों में देखती रही.
"तू बिलकुल वैसी लगती है, जैसी मेरे घर के कैलेण्डर में देवी माँ की फ़ोटो है....... बल्कि तू उस फ़ोटो से भी सुन्दर है !!" गुड्डू उसके गालों को सहलाए जा रहा था, उसके माथे पर पड़ी बेतरतीब लटें हटा रहा था......"फ़ोटो वाली की आँखें एकदम काली हैं, तेरी और भी सुन्दर हैं..... भूरी-भूरी !!" कमरे में फ़िर दो पल एकदम सन्नाटा रहा, मगर इस बार साँसों का शोर सुनाई पड़ता था........ गुड्डू की उंगलियाँ जी भर अमीना का चेहरा छू रही थीं. उसकी आँखें एकटक अमीना का चेहरा निहार रही थीं. और साँसें बढ़ती ही जाती थीं.......!!
उसने घबराते हुए, अपने कांपते होंठ अमीना के होठों पर रख दिए...... अमीना ने अपनी आँखें मींच लीं. अमीना ने पहली दफ़े होठों पर धड़कनें महसूस कीं........ आज उसके होठों पर दुनिया ठहर गई थी जैसे !! और उसके गालों पर आंसू बेतहाशा बह रहे थे........
आंसू की एक ठण्डी बूँद उनके होठों के बीच बह आई...... गुड्डू का ध्यान टूटा. उसने अपने होंठ अमीना के चेहरे से अलग किए, और उसका चेहरा देखते देखते ही दरवाज़े से बाहर चला आया.
उस दिन दुबारा गुड्डू ने पलटकर ऊपर नहीं देखा. उस पूरे दिन, उसने ध्यान दिया कि कोई ऊपर नहीं गया. पुरे दिन ऊपर चाय नहीं गई...... बिक्री पर भी असर पड़ा.
मगर तेजपाल को उसके पांच सौ रूपए तो थमाने ही पड़ेंगे...... यही सोचते हुए गुड्डू रात को घर लौटा. आज उसे बहुत सुकून था, सो नींद भी जल्दी आ गई...... खाना भी नहीं बनाया.
सुबह दूकान खोलने पहुंचा तो देखता है, पुलिस वालों की भीड़ सी लगी थी. कई लोग ऊपर जाते थे, कई नीचे आते थे. अफ़रातफ़री का माहौल था. तभी उसने दोनों में से एक मुस्टण्डे को नीचे उतारते देखा और भाग कर उसके पास पहुँच गया, "सलाम पहलवान भाई !! कैसी भीड़ मची है आज ??" उसे आज पहली बार पहलवान थका हुआ सा दिखा. उसने जब जवाब देने के लिए गुड्डू के कंधे पर हाथ रखा, तो आज वो डरा नहीं....

"अमीना ने रात में फांसी लगा ली......."😑😑

10 comments:

  1. Speechless yaar..... ��������

    ReplyDelete
  2. Superb bro......so touchy....no words to explain. ������������

    ReplyDelete
  3. નિઃશબ્દ ..નિરામય નિર્મળ પ્રેમ ...હ્ર્દયસ્પર્શી ..હૃદયદ્રાવક ..

    ReplyDelete
  4. रे गजब ढा दिया लाले। कमाल, बवाल। मंटो साहब की रूह है तेरे में

    ReplyDelete