Sunday, 20 March 2016

"गद्दारी हमारे खून में है"

(1)

किसी भी राष्ट्र की अस्मिता और उसके अस्तित्व की रक्षा के लिए उसका सबसे प्रचण्ड अस्त्र उसके शहीदों और उनके साथ गद्दारी करने वालो की याद होती है

भारत उन दुर्भाग्यशाली राष्ट्रों में से रहा है जहां राष्ट्रभक्त क्रांतिकारियों को तो भुलाया ही गया है वहीं उनके साथ गद्दारी करने वालो को भी भुला दिया गया है। वे या तो इतिहास की स्मृति से छांट दिए गए है या फिर उन्हें स्वतंत्रता के बाद फिर से प्रतिष्ठित होने का अवसर दिया गया है।

इसमें जितना दोष कांग्रेस और उनके वामपंथी इतिहासकारो का है, उतना ही दोष भारतीय समाज का भी है। ऐसा संभव ही नही था की उस काल में गद्दारो को भारतीय समाज जानता नही था लेकिन कालांतर में स्वार्थी और क्षमा की संस्कृति से लदे समाज ने, गद्दारो को भुला कर, आगे आने वाली पीढ़ी के साथ बड़ा अन्याय किया है। भारतीय क्रांतिकारियों के इतिहास में  'काकोरी काण्ड', 'लाहोर काण्ड' और 'चंद्रशेखर आज़ाद का हत्याकांड', 3 महत्वपूर्ण घटनाये हुयी है।जिसमे ककोरी और लाहोर कांड पर तो मुकदमे चले थे और गद्दारो की ही गवाही पर क्रांतिकारियों को फांसी तक की सजा हुयी थी। इन गद्दारो के नाम सार्वजनिक थे, लेकिन इसके बाद भी आज शायद ही कोई हो जो उन लोगो के बारे में जानता होगा या उनका भविष्य में क्या हुआ, इसके बारे में कोई उत्सुकता ही बची है। चंद्रशेखर आज़ाद की हत्या ने क्यूंकि कभी अदालत नही देखी इसलिए उसके गद्दार हमेशा बचते रहे है। इसके बाद भी 1931 के बाद से ही कुछ लोगो पर हमेशा शक रहा है लेकिन 70 के दशक बाद सब मौन हो गए है।

चंद्रशेखर आज़ाद की हत्या के गद्दारो पर फिर कभी लिखूंगा लेकिन आज काकोरी कांड में क्रांतिकारियों को फांसी दिलवाने वाले भारतीयों का परिचय, आप लोगो से जरूर कराऊंगा।

9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन के पास, राम प्रसाद 'बिस्मिल' के नेतृत्व वाली "हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन"(HRA) ने ब्रिटिश सरकार के खजाना लूटने के लिए, ट्रेन पर सशस्त्र डकैती डाली थी। इस काण्ड से तत्कालीन सरकार हिल गयी थी और पुरे देश से "हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" के सदस्यों को इस डकैती के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया। कुल 40 लोगो को इस काण्ड में दोषी होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था। इस डैकैती में शामिल अशफाख खान और सचिन्द्र बक्शी उस वक्त पकड़ में नही आये और ट्रायल समाप्त होने के बाद ही वे गिरफ्तार हो पाये थे। उसमे शामिल चन्द्रशेखर 'आज़ाद' ही अकेले ऐसे थे जिन्हे अंत तक पुलिस गिरफ्तार नही कर पायी थी।

ब्रिटिश सरकार की ओर से लखनऊ के "पंडित जगत नारायण मुल्ला", जो की कश्मीरी पंडित थे, सरकारी वकील थे। पंडित मोतीलाल नेहरू ने उनसे इन क्रांतिकारियों के विरुद्ध मुक़दमा न लड़ के, उनके लिए मुकदमा लड़ने को कहा था लेकिन पंडित जगत नारायण मुल्ला की रामप्रसाद 'बिस्मिल' से पुरानी अनबन थी इसलिए उन्होंने उनके पक्ष में मुकदमा लड़ने के बजाये सरकारी वकील बनना पसंद किया था। दरअसल जब 1916 में 'बाल गंगाधर तिलक', जो कांग्रेस के गर्म दल के थे, का लखनऊ आगमन हुआ था तब कांग्रेस के नरम पंथी, जिसमे जगत नारायण मुल्ला प्रमुख थे, जिनका कांग्रेस में वर्वस्य था, नही चाहते थे की बाल गंगाधर तिलक का लखनऊ में सार्वजनिक अभिनंदन और स्वागत हो। लेकिन रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने नरम पंथियों की बात मानने से इंकार कर दिया था और स्वयं उन्हें लेने रेलवे स्टेशन गए थे। तिलक का पुरे लखनऊ शहर में शानदार स्वागत और अभिनंदन हुआ था जिससे नरमपंथी कांग्रेसी काफी आहात हुए थे।

जब ब्रिटिश सरकार ने कोर्ट में इल्जाम दाखिल किया था तब 4 लोगो के नाम चार्जशीट हटा दिए गए थे। बनारस के 'दामोदर सेठ' को खराब बीमारी के आधार पर छोड़ दिया गया और बाकि तीन क्रन्तिकारी और भी छोड़े गए थे। वो थे,

"उरई के वीरभद्र तिवारी", 
"इलाहबाद के ज्योति शंकर दीक्षित" और 
"मथुरा के शिवचरण लाल".

इन तीनो पर ही उस वक्त यह संदेह था की ये ब्रिरिश सरकार की सहायता करने के आश्वासन पर बचा लिए गए थे।

इसके आलावा 2 क्रन्तिकारी सरकारी गवाह बन गए थे,

"शाजहंपुर के बनारसी लाल और इंदुभूषण मित्रा" और 
"रायबरेली के बनवारी लाल", जो कम सजा के आश्वासन पर सरकारी वकील की मदद करने को तैयार हो गये थे.

इन गद्दारो की मदद से 'रामप्रसाद बिस्मिल', 'ठाकुर रोशन सिंह', 'राजेन्द्र नाथ लहरी', 'अशफ़ाक़ुल्ला खान' को फांसी की सजा हुयी थी.

इसके साथ ही 'सचिंद्रनाथ सन्याल' और 'सचिंद्रनाथ बक्शी' को कालापानी, 'मन्मथ नाथ गुप्ता' को 14 साल, 'योगेश चन्द्र चटर्जी', 'मुकुन्दी लाल', 'गोविंद चरण कर', 'राज कुमार सिंह' और 'राम कृष्णा खत्री' को 10 साल, 'विष्णु चरण दुबलिश', 'सुरेश चरण भट्टाचार्य' को 7 साल, 'भूपेन नाथ सान्याल', 'प्रेम कृष्णा खन्ना' को 5 साल और 'केशब चक्रवर्ती' को 4 साल की कारावास हुयी थी.

आज चंद नामो को छोड़ कर न हमे क्रन्तिकारी याद है और न ही उनकी याद है जिन्होंने इनके साथ गद्दारी कर के भारत माँ के साथ गद्दारी की थी।

क्रन्तिकारीयों को भूल जाना अपराध है लेकिन गद्दारो को भूले तो आत्महत्या होगी।

(क्रमशः) :-...

1 comment:

  1. Azadi me na sirf hindustani gaddar the par British bhi gaddar the. Unki gaddari ka fayda azadi me Mila hai. Us ek British gaddar ka name CAPTION WILLIAM GORDAN hai. Inhi k vajah se MANGAL PANDEY jaise krantikario ne safalta se andolan Kiya tha.
    Kya hame inhe yaad rakhna chahiye ki bhul jana chahiye???

    ReplyDelete