Tuesday, 28 June 2016

एक काफिर ऐसा भी था....!!!

" अरे भाई कहाँ जा रहे हो हनुमान जी के गेटअप मे और नाम क्या है तुम्हारा " तौफीक मियाँ ने एक छोटे बच्चे से पूँछा जिसने हनुमान जी की ड्रेस पहनी हुई थी,
" चचा जान हमारे स्कूल मे फैंसी ड्रेस का कॉम्पटीशन है उसी मे हिस्सा लेने जा रहा हूँ और मेरा नाम सलमान है " उस 7-8 साल के बच्चे ने तौफीक मियाँ से बोला,
" अच्छा, फिर तो जीत के ही आना " तौफीक मियाँ ने हँसते हुए उस बच्चे से कहा और फिर अपने घर की तरफ चल दिये,
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तौफीक मियाँ पाँचो टाइम के नमाज़ी और ख़ुदा के बताये हुए रास्ते पर चलने वाले बन्दे हैं, ख़ुदा के रास्ते पर चलने के कारण तौफीक मियाँ ने शादी भी नहीं की थी,
अभी तौफीक मियाँ थोड़ी दूर ही चले थे की तभी पीछे से किसी ने आवाज़ लगाई " अरे ओ तौफीक मियाँ ज़रा रुको ", उन्होंने पीछे मुड़ के देखा तो एक आदमी उन्हें बुला रहा था जो उन्हें रोज़ मस्ज़िद मे मिलता था, " हाँ भाईजान कहिये कैसे याद करा " उन्होंने उससे पूँछा,

" मियाँ आपको इमाम साब बुला रहे हैं, आप जल्दी से अब्दुल मियाँ के घर पहुँचिये " उस आदमी ने कहा,

" ठीक है भाईजान आता हूँ " और ये कहकर तौफीक मियाँ अब्दुल के घर की ओर चल दिये,

वहाँ पहुँच के उन्होंने देखा की वहाँ पर पहले से ही 70-80 आदमी मौजूद थे, और उनके सामने इमाम साब खड़े होकर कुछ कह रहे थे, तौफीक मियाँ ने पास जा के सुना तो इमाम साब उन सब लोगों से कह रहे थे की " भाई लोगों इस्लाम खतरे मे है, लड़ाई कभी भी छिड़ सकती है, सुना है उन हिन्दू काफिरों ने हमारे 5 लोगों का क़त्ल कर दिया है, हम भी चुप बैठने वाले नहीं, हम 5 के बदले 50 को मारेंगे, तुम सब लोग हथियार ले के अभी उन काफिरों पर हमला बोल दो " इमाम की बात सुनकर सब लोग अल्लाह ओ अकबर करके हाँथ हवा मे लहराते हुए बाहर निकल गये, और इधर तौफीक मियाँ हक्के बक्के से खड़े ही रह गये, उन्हें खड़ा देखकर इमाम ने उनसे बोला " क्या हुआ, तुम यहाँ क्यूँ खड़े हो, बाहर जाकर उन काफिरों को सबक क्यों नहीं सिखाते "

" लेकिन इमाम साब रोज़ाना मस्ज़िद मे तो आप कुछ और ही सबक सिखाते थे, दीन का सबक, ईमान का सबक, इंसानियत का सबक, आज ये कौन सा सबक सिखा रहे हैं आप "

इमाम साब गुस्से से बोले " मियाँ वो सब बकवास था, अब जो मैं तुमसे कह रहा हूँ वो ही सही है, इसलिए बहस छोड़ के जो मैंने कहा है वो करो " और ये बोलकर इमाम साब पीछे के दरवाजे से बाहर निकल गये,

और तभी तौफीक मियाँ को बाहर चीखने चिल्लाने का शोर सुनाई दिया, तौफीक मियाँ ने बाहर आकर देखा तो सब तरफ बुरा हाल था, वो लोग औरतों, बच्चों को सभी को मार रहे थे, चारों तरफ सिर्फ लाशें बिखरी पड़ीं थीं, वो मंज़र देखकर तौफीक मियाँ का कलेजा मुँह को आ गया, उनके पसीने छूट गये, पैर काँपने लगे, वो लड़खड़ाते पैरों से आगे बढे तो थोड़ी दूर पर वो ही बच्चा मरा पड़ा था जो उन्हें हनुमान जी के गेटअप मे मिला था, उन वहशियों ने हिन्दू के धोखे मे उस मासूम को भी अपनी वहशियत का शिकार बना दिया था, तौफीक मियाँ दहाड़ मार के वहीँ घुटनो के बल गिर पड़े, काफी देर वहीँ पड़े रोते रहे, फिर अचानक उठे, आँसू पोंछे और उस बच्चे की लाश कन्धे पर उठा के सीधे मस्ज़िद ले के पहुँच गये और उस बच्चे की लाश को इमाम के सामने रख के गरजते हुए बोले " इमाम साब देखो इसे, इसी से तो तुम्हारे इस्लाम को खतरा था ना ?? इस मासूम से ??? इसी से डर गये थे ना तुम और तुम्हारे लोग ?? तभी तो उन वहशियों ने इस मासूम को मार के तुम्हारे इस्लाम को बचा लिया, इमाम साब फर्क है तुम्हारे इस्लाम मे और मेरे इस्लाम मे, मेरा इस्लाम मेरा ख़ुदा इंसानियत को मारने को नहीं कहता तुम्हारे इस्लाम की तरह, मेरा ख़ुदा पहले इंसानियत की बात करता है और तुम्हारा वहशियत का, आज से मेरे लिये वो जगह हराम है जहाँ आप जैसे वहशी लोग हों, आज से मेरे लिये ये जगह भी हराम है जहाँ आप खड़े हैं और हाँ आज से आप मुझे भी बड़े शौक से काफ़िर कह सकते हैं "
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और इतना बोल के तौफीक मियाँ उस बच्चे की लाश उठा के लड़खड़ाते हुए कब्रिस्तान की तरफ चल दिये...

बात उन दिनों की है जब मैं यूपी के दौरे पर था...!!!
(2012/13)

:- Raj Vasani...😉☺

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