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क्रमशः से आगे
भगत सिंह और बुटकेश्वर दत्त द्वारा दिल्ली की असेम्बली में बम फोड़ने का नतीजा यह हुआ था की ब्रिटिश सरकार घबरा गयी थी और उनकी पुलिस ने देश भर में "एचएसआरऐ" के ठिकानो पर छापे मारने शुरू कर दिए थे। ऐसे ही एक छापे में, लौहोर की बम फैक्ट्री पकड़ी गयी थी और सुखदेव थापर , किशोरी लाल और जय गोपाल गिरफ्तार कर लिए गए थे, लेकिन एक सदस्य, यशपाल वहां से बच निकलने में सफल हो गए थे। यशपाल, जो बाद में हिंदी के एक बड़े लेखक बने थे, वे एक वामपंथी थे और लौहोर में, कालेज के दिनों से ही भगत सिंह और सुखदेव थापर से मिले थे। वे केंद्रीय भूमिका में न होकर सहयोगी की भूमिका में ही थे। इस के बाद ही, "एचएसआरऐ" की दूसरी बम फैक्ट्री, सहारनपुर में पकड़ गयी थी। यह संदेह हमेशा ही रहा है की सहारनपुर स्थित बम फैक्ट्री की मुखबरी लौहोर बम फैक्ट्री पकड़े जाने के बाद हुयी थी। इन दो फैक्टरियों के पकड़े जाने से "एचएसआरऐ" को बड़ा धक्का लगा था और यही से कमजोर क्रांतिकारियों में से गद्दार निकलने शुरू हुए थे।
सबसे पहले जो गद्दार टुटा था वो 'जय गोपाल' था। जय गोपाल का टूटना बहुत महत्वपूर्ण था क्यूंकि सैंडर्स की हत्या के दल में वो भी शामिल था। लौहोर में उस दिन, एसएसपी स्कॉट को मारने की पूरी योजना, चंद्रशेखर आज़ाद की थी। उस योजना के अनुसार, जय गोपाल को सकॉट को पहचानना था। पहचान के बाद, भगत सिंह को पहली गोली मारनी थी और उनकी गोली चलने के बाद, राजगुरु को गोली चलानी थी। चंद्रशेखर आज़ाद को इन दोनों को कवर करना था ताकि वो लोग गोली मार कर भाग जाए।
जय गोपाल ने सॉन्डर्स को सकॉट समझ कर, भगत सिंह को इशारा किया था लेकिन भगत सिंह ने जब देखा तो वह उसे सकॉट के रूप में पहचान नही पाये थे। इसी वजह से भगत सिंह गोली चलाने में हिचकिचा गये थे। इसलिए देरी होता देख कर राजगुरु ने सॉन्डर्स को पहले गोली मारी थी। राजगुरु के गोली चलने के बाद ही भगत सिंह ने सॉन्डर्स को गोली मारी थी। जब वो भाग रहे थे तब हेड कांस्टेबल चन्ना सिंह ने उनका पीछा किया और तब चंद्रशेखर आज़ाद ने, बाकी साथियों को भागने का मौका देते हुए, चन्ना सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी थी।
जय गोपाल से जेल में जब उसकी पत्नी और माँ मिलने आई, तो उनके द्वारा पुलिस ने उसपर दबाव बनाया और प्रलोभन दिया था। आखिर में जय गोपाल, अपनी पत्नी और माँ के कहने पर मान गया और वह गद्दारी करने को तैयार हो गया था। जय गोपाल, अपनी पत्नी और माँ का रोना बर्दाश्त नही कर पाया था और उसने पुलिस को, "एचएसआरऐ" के सारे भेद खोल दिए थे।
उसकी निशान देही पर ही भगत सिंह और राजगुरु की, सॉन्डर्स की हत्या करने वाले अभियुक्त के रूप में पहचान हुयी थी। यहां यह गौर करने वाली बात है की इस काण्ड में, सुखदेव शामिल नही थे लेकिन फिर भी जय गोपाल ने योजना बनाने वाले के रूप में, सुखदेव का नाम लिया था। उस वक्त, पंजाब पुलिस के लिए, सुखदेव सबसे बड़ा नाम था क्यूंकि वो ही "एचएसआरऐ" के सबसे प्रभावशाली संगठक थे। इसलिए अदालत में यह केस, भगत सिंह के नाम पर नही "द कोर्ट वर्सेज सुखदेव एवं अन्य" के नाम से चला था।
“In the court of The Lahore Conspiracy Case Tribunal, Lahore, constituted under Ordinance no III of 1930: The Crown – Complainant versus Sukhdev and others”.
(क्रमशः) :-
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