(7)
इधर गर्मियाँ बढ़ती जा रही थी और उधर हमारी सेहत दिन-ब-दिन सुधरती जा रही थी। यही कोई बीस-एक दिन बाद वापस दिल्ली का रूख किया गया...दो-चार बार पगली से कुछ सेकेंडो वाली बात भी हुवी थी इसबीच में। अब चूँकि घर में हम खूब बदनाम हो चुके थे तो तमाम निगरानियाँ झेलना होता था...सो बमुश्किल एकाध सिगरेट ही रोज के हिसाब से फूँक पाते थे। राजकोट पहुँचते ही माइल्ड डिब्बा लेके तरकीब से छुपाया गया...शाम तक में ही हमें शहादत वाली फीलींग आने लग गई। खैर ट्रेन बिठाने भैया साथ आये...बर्थ खोजके बैठा गया...अब हम बेसब्र हो रहे थे ट्रेन के चल पङने को लेकर। पन्द्रह-बीस मिनट मेंटली टाॅर्चर करने के बाद ट्रेन चल पङी आखिरकार...हम अब बखूबी महसूस कर सकते थे कि अगस्त 1947 में हमारे देश की तत्कालीन पीढ़ी कितना खुश हुवी होगी। अब हम आज़ाद थे सो जश्न-ए-आज़ादी तसल्ली से लगातार दो सिगरेट फूँक के मनाया गया। पगली अचानक ही कलेजे से कुछ बोल पङी...अब बिना फोन किए कैसे मान भी सकते थे हम...पर काश कि न किया होता! लगातार चार फोन करने के बाद पगली का मैसेज मिला वो भी धमक लिए अंदाज़ में..."मेरा जीना न हराम़ करो...तुम कहीं मर क्यूँ नहीं जाते?" अब कौन बताता पगली को हम अपने तरफ़ से तो मर ही चुके थे...वो तो दास्तां-ए-मोहब्बत लिखना बाक़ी था सो मौत ने भी दिल तोङ दिया था। पगली के इस मैसेज ने हमें और तोङा...आत्मा तक टूटन के दर्द से कराह उठा था...सफ़र के साथ-साथ हम सफर(Suffer) भी कर रहे थे...खुलके रो पाना भी संभव न था...अंदर का मर्द पब्लिकली रोने की इज़ाजत ही न दे रहा था। रात भर रास्ते में डायरी को काला करता आया...कालिख की थोङी-सी बानग़ी पेश है दोस्तों...
1:- "अपने लाश को भी कंधा देने की हसरत है,
ज़िँदा रहने को...ये भी एक मक़सद है।"
2:- "वो शख्स हँसके क़त्ल करने को मशहूर है,
ज़िँदा रहना है तो पर्दादारी सिखिए।"
आनंद विहार रेलवे स्टेशन...अभी ट्रेन आऊटर सिगनल से प्लेटफार्म के तरफ़ रेंगते हुवे बढ़ रही थी। फोन हौले से कांपा...बात करके मालूम हुवा कि लौंडे पूरी मंडली के साथ हमें रिसीव करने आए हैं। आखिर हम कब्र से वापस लौटकर राजधानी पहुँच रहे थे...दरबारियों को तो खुश होना ही था...उन्हें तो पगली द्वारा हमें मिली झिङकी का पता भी न था। खैर हमारा ज़बर्दस्त स्वागत हुवा...ऐसा स्वागत तो तब भी न हुवा था जब हम युनिवर्सिटी एक्जाम को. फ़ोङ-फ़ाङ के लौटे थे। घर में हो चुकी बदनामी ने हमें मिलने वाले फंड पर कैंची चलवा दिया था बावजूद लौंडों के बीयर की गुँजाईश को टालना हमारे लिए असहनीय था...सो रास्ते भर ऑटो में दौर-ए-किंगफ़िशर चलता रहा। हमारा फ्लैट एक और सदमा तैयार लिए बैठा है...इसका ज़रा भी अंदाज़ा न था किसी को...कमरा खोलते ही एल.सी.डी. के खूँटे को खाली देख हमसब हैरान रह गए।
पहले तो पगली द्वारा गिफ्टेड मोहब्बतिया ग़म...खाली पङा ए.टी.एम...अब ये गायब एल.सी.डी...मने चौतरफ़ा ग़मगीन माहौल हमें घेरे हुवा था। अब कौन परवाह करता है कि पाॅकेट में पाँच सौ का एक ही पत्ता बाक़ी है और फ़िलहाल कहीं से फंड के आसार भी नहीं हैं...वो भी तब जब मंदिर में हमारी इज्जत प्रचंड दानवीरों वाली हो। हमारा टाटा वाला फोन दिखाके अगले सुबह तक का कोटा लेके लौंडा आया और फ़िर हर खुलती बोतल और धुआँ होती हर एक सिगरेट हमारा ग़म कुछ कम करते गयी। आवारगी का एक उसुल है...किसी ग़म से छुटकारा पाना हो तो कोई और ग़म पाल लो। हमें एल.सी.डी. का ग़म मिल चुका था...सो हम पगली के ग़म से तबतक का छुटकारा पा गये जबतक कि हमने एल.सी.डी. जब्त न कर लिया। हमारा फोकस अब सिर्फ़ शराब और एल.सी.डी. था...बेतहाशा ग़मों ने फ़िर से शायर बना दिया था...बाक़ी की कसर मयकश मौसम ने पूरा किया और हम बङे शायरों के साथ गुस्ताख़ हो बैठे...अंदाज़-ए-गुस्ताख़ी आपसबों के सुपुर्द...
गालिब:-
गालिब शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,
या वो ज़गह बता...जहाँ पर खुदा नहीं।
इकबाल:-
मस्जिद खुदा का घर है, पीने की ज़गह नहीं,
काफ़िर के दिल में जा...वहाँ पर खुदा नहीं।
फ़राज़:-
काफ़िर के दिल से आया हूँ ये देखकर फ़राज़,
खुदा मौज़ूद है वहाँ...पर उसे पता नहीं।
वसी:-
खुदा तो मौज़ूद दुनिया में हर ज़गह है,
तु ज़न्नत में जा...वहाँ पीने से मना नहीं।
अब गुस्ताख़ राज:-
ग़र पीने का शौक तुम रखते हो राज,
आ बैठ अभी पी...ज़न्नत बना यहीं।
(जारी...)
- Raj Vasani... 😉😃
Wàaaaààaaaaah
ReplyDeleteSuperb Raj 👍👍👍👍👍
ReplyDeleteSuperb Raj 👍👍👍👍👍
ReplyDeleteThanks.....
ReplyDeleteThanks.....
ReplyDeleteकिसी ग़म से छुटकारा पाना हो तो कोई और ग़म पाल लो!!! divangi se barbaadi ke aur kitne panne hai!!
ReplyDeleteकिसी ग़म से छुटकारा पाना हो तो कोई और ग़म पाल लो!!! divangi se barbaadi ke aur kitne panne hai!!
ReplyDelete