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मार्च का महीना तो वैसे ही बङा रोमांटिक होता है...कामदेव का वसंत...फगुनहट की बयारें...उपर से हमारे जन्मदिन के सिर्फ़ छह दिनों बाद ही पगली का भी जन्मदिन। हमारे बींसवे साल का पहला दिन...पगली के आने की तैयारियाँ...रात की ज़बरदस्त पार्टी के बाद अस्त-व्यस्त पङा दोनों कमरा...जहाँ-तहाँ बिखरे बीयर की बोतलें...केक से सने गंदे कपङे और बेडशीट...मन्चुरियन ड्राय....सिगरेट के बाक़ी बचे फिल्टर्स...खैर बङे मेहनत से एक कमरे की साफ़-सफ़ाई करके रोमांटिक माहौल तैयार किया गया। उत्तेजना अपने चरम पर थी...हमारी ऐसी हालत तो तब भी न हुवी थी जब हम पोलिटिकल सायन्स की परीक्षा देने जा रहे थे। नर्वस पर संतुलन के लिए डेस्कटाॅप पर किशोर दा बजाए गये...एक-एक मिनट के बीस-पच्चीस बरस गुजरने के बाद दरवाजे पर दस्तक हुवी। विलियम वर्ड्सवर्थ लिखे हैं कि हर प्रेमी को अपनी प्रेमिका ट्राॅय की राजकुमारी नज़र आती है...हम भी अपवाद न थे...और हो भी कैसे सकते थे...पगली के उस रूप को अब बंद आँखों से ही महसूस किया करता हूँ। एक कुंवारे के घर में उसकी प्रेमिका की उपस्थिति शराब से भी ज्यादा असर दिखाती है...हमारी साँसें कब जुङी...कब हम एक-दूसरे के कलेजे में उतरे...कुछ ख्याल नहीं...ख्याल है तो बस पगली के फोन में शाम पाँच बजे मनहुस अलार्म का बजना। अब जाना उसकी मज़बूरी थी सो पगली को घर तक पहुँचा आना हमारी भी। काश हमारे पास इतनी ताकत होती कि समय को कुछ देर के लिए थाम सकते...पर वो बेरहम रफ़्तार चलता रहा और हमारे कलेजे पर पहाड़ जैसा बोझ रखता गया। भारी मन से बाहर निकलके हमने ऑटो लिया और पगली को पहुँचा आया।
मुद्दतें गुजरी पर वो दिन लौटकर न आ सका...जबकि वैसी तमाम मनहुस शामें आई और हम उन शामों को हार्ड राॅक कैफ़े में बडवाइज़र मैग्नम, मन्चुरियन ड्राय, क्लासिक माइल्ड, और अपने बेहिसाब तन्हा ग़मों के साथ रातों में तब्दील करते रहे...और किसी अंज़ान शायर के शब्दों के साथ बेकसूर पगली पर क़यामत तक ये तोहमत लगाते रहे, " ये तेरे आँखों की तौहीन है...कि तेरा आशिक़ शराब पीता है"।
अब बारी थी पगली के उन्नीस बरस पूरा करके आगे बढ़ जाने का...ये 2012 आगे चलके इतना अहम और बेरहम हो जानेवाला था...मालूम न था। खैर वक़्त था पगली के हैप्पी जन्मदिन का...पर हम महज़ पाँच-सात दिनों में ही फ़िर से कंगाल हो चुके थे...होते भी क्यों न...चाहनेवालों के गुटबाजी ने पार्टियों की संख्या को बेतरह बढ़ा जो दिया था! हम अबतक चार्वाक के उधार लेकर घी(शराब) पीनेवाली कहावत को चरितार्थ करने लगे थे...सो पगली के जन्मदिन पर उसी से उधार लेकर पार्टी दिया गया। आगे भारी मात्रा में परीक्षाएँ हमारा इंतज़ार कर रही थी...पर हमने कभी इनका बहुत लोड न लिया...परिणाम बढ़िया कहे जाने लायक था भी। सेशन बदलते ही यूनिवर्सिटी में अगले चुनावों का दौर...और ये दौर बहुत खास इसलिए कि इसने पगली को हमसे बिना वज़ह बहुत दूर जाते देखा...इसने हमें कागज़ों पर बर्बाद होते देखा...इसने हमें अपने ही पैर पर कुल्हाङी चलाते कालिदास बनते देखा...इसने हमें नशे में बेतरह डूब जाते देखा...इसने हमें संघी बेहूदगी से बाहर आते देखा...इसने हमें कई चेहरों में अपने पगली को खोजते देखा...इसने नशे में मदहोश कम बेहोश ज्यादा वाली हालत में सङकों-गलियों से हमें उठाते दोस्तों की वो काली रातें भी देखा।
आज भी उन दिनों और रातों की यादें आत्मा को कलपा के रख देती है...अब आज और न लिखा जाएगा...नेतागिरी और मोहब्बतों की उन दर्दीली यादों ने कंठ को भी और उँगलियों को भी जाम करके रख दिया है।
2012 का वो मनहुस अक्टूबर महीना...चुनावी भागदौड़ अपने चरम पर...पगली की ताबङतोङ शिकायतें...खैर तमाम व्यस्तता को परे हटा पगली से माॅडल ध विलेज मिला गया। हमें मालूम न था कि पगली आखिरी मुलाकात करने आई है...उस हसीन मुलाकात के बाद अचानक ही पगली को काॅमर्स छोङके पत्रकारिता का शौक चरचराया और वो हमें अलविदा कहके सुरत चल पङी। तब हम इतने बुरे न थे...पर अभीतक हम वज़ह की तलाश में कोलंबस हुवे जाते हैं। पगली ने हमें नज़रअंदाज़ करना शुरू किया...और जैसा की होता है कि किसीको अगर सबसे बडी़ गाली बिनबोले देनी हो तो उसे नज़रअंदाज़ करते रहो... चुनावी जिम्मेदारियों के कारण हम अपने तक़लीफ़ को अंदर में बाँध के रखे। ये वो समय था जब हमें उसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी...नेतागिरी ने पुराने दोस्तों को दुश्मन बना दिया था...हम बेहद अकेले थे...सबकुछ जानते हुवे भी पगली हमें मिनट-दर-मिनट मरता छोङ गई वो भी वज़ह बताए बिना।
एक अर्से बाद वो फ़िर से आई ज़िंदगी में पर अब तमाम छलावे और शर्तें लिए हुवे...और इस अर्से में हमने कभी "पिया" तो कभी "राजकुमारी" में अपने पगली को खोज़ा। एक असफ़ल प्रेमी चलता-फ़िरता न्यूक्लियर बम होता है...सो हमारे फटने से पगली के अलावा हर वो कोई झुलसता रहा जो हमारे क़रीब आया।
मुद्दतें गुजरी...हम अपने पगली को न पा सके...वो वापस आई भी तो "पुराने बोतल में नई शराब' के तर्ज़ पर...अफ़सोस कि हमने हमेशा ही पुरानी शराब को पसंद किया है...परिणाम ये कि हम मौत तक के लिए नशे के आगोश में जा पहुँचे...और अब उसकी दिखावटी क़ोशिशें नाकाफ़ी होनी ही थी।
(जारी...)
- Raj Vasani. (મોરી ચા.) 😊😉
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