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लौहोर षणयंत्र केस में जयगोपाल क्यूंकि सैंडर्स हत्याकांड के वक्त मौजूद था इसलिए उसकी भगत सिंह और राजगुरु के खिलाफ गवाही महत्वपूर्ण थी। उसी के साथ 'फणीन्द्र नाथ घोष' ने भी इन लोगो के खिलाफ गवाही दी थी। फणीन्द्र नाथ घोष की गवाही ज्यादा महत्वपूर्ण थी क्यों की वो एचएसआरऎ (HSRA ) के संस्थापक सदस्य थे बल्कि वो बिहार यूनिट के प्रमुख और HSRA के 7 सदस्यीय केंद्रीय समिति के भी सदस्य थे। पुलिस के छापे के दौरान उसे कलकत्ता में पकड़ा गया था। घोष को, एचएसआरऐ की पूरी अंदरुनी जानकारी थी और वो काफी क्रांतिकारियों को जानता भी था। उसकी निशान देही पर देश भर में छिपे क्रांतिकारियों के ठिकाने पर छापे पड़े थे और उसके साथ उसने उन लोगो को भी चिन्हित किया था जो बम बनाने में सहायक थे। फणीन्द्र नाथ की गवाही ने क्रांतिकारियों की कमर तोड़ने का काम किया था। चंद्रशेखर आज़ाद के झाँसी के ठिकाने का भी उसे पता था लेकिन आज़ाद पुलिस के छापा डालने से पहले ही झाँसी से निकल कर बच गए थे।
मैंने फणीन्द्र नाथ घोष को काफी समझने की कोशिश की है। मैंने यह भी समझने की कोशिश की है क्यों उस ऐसे एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी, वक्त पड़ने पर अपनी आस्था और विश्वास से छल कर बैठा और अपने ही आंदोलन और साथियों की पीठ में छुरा भोंक दिया था। फणीन्द्र नाथ कोई मामूली क्रांतिकारी नही थे, वो HSRA के जन्म लेने से पहले ही बंगाल और बिहार में क्रन्तिकारी गतिविधियों में लगे हुए थे। जब 9 सितम्बर 1928 को पंजाब, यूपी, बिहार बंगाल के क्रन्तिकारी, फिरोज शाह कोटला मैदान, दिल्ली में मिले थे तब चन्द्रशेखर आज़ाद , भगत सिंह, सुखदेव, के साथ फणीन्द्र नाथ भी मौजूद थे और विभिन्न क्षेत्रीय क्रन्तिकारी संघटनो का विलय कर के, एचएसआरऎ का गठन किया था। वहीं पर, फणीन्द्र नाथ घोष को केंद्रीय समिति में लेने का और उसे बिहार का प्रमुख बनाये जाने का भी निर्णय लिया गया था।
फणीन्द्र नाथ, अपने अन्य साथी क्रांतिकारियों से उम्र में काफी बड़े थे और इसलिए उनके साथी उन्हें आदर से 'दद्दा' कह कर बुलाते थे। दिल्ली असेम्बली बम कांड में भगत सिंह की गिरफ्तारी और बाद में लौहोर बम फैक्ट्री पकड़े जाने पर, जयगोपाल की शिनाख्त पर खुद की और सुखदेव की गिरफ्तारी से, फणीन्द्र नाथ घोष ने यह आंकलन कर लिया था की HSRA के सभी प्रमुख सदस्य गिरफ्तार हो ही चुके है और यदि आज़ाद भी गिरफ्तार हो जाते है, तो HSRA का भविष्य खत्म हो जायेगा। खुद फणीन्द्र नाथ घोष, पहले से ही हत्या और डकैती की घटनाओ में मुलजिम थे इसलिए पूरी माफ़ी की शर्त पर, वह ब्रिटिश पुलिस के गवाह बनने को तैयार होगये थे। फणीन्द्र नाथ घोष को गद्दारी की सजा का भी पूरा भान था इसलिए सबसे पहले उसने चंद्रशेखर आज़ाद के सारे ठिकानो का खुलासा किया था लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद, शुरू से ही सजग थे लेकिन उनके सारे ठिकानो का पता, फणीन्द्र नाथ घोष को भी नही मालूम था।
गवाह बनने के बाद से ही चंद्रशेखर आज़ाद ने जयगोपाल के साथ, फणीन्द्र नाथ घोष को मार देने का फैसला कर लिया था और यह संदेश सारे बचे हुए क्रांतिकारियों को भी दे दिया गया था। भुसावल बम काण्ड की सुनवाई के दौरान जयगोपाल के साथ फणीन्द्र नाथ घोष को भी गोली से मारने की योजना थी लेकिन सिर्फ जयगोपाल को ही गोली लग पायी थी और घोष बच गया था।
फणीन्द्र नाथ घोष ने केवल अपनी जान बचाने के लिए ही गवाही नही दी थी उसने उसकी पूरी कीमत भी वसूली थी। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी में लटकाने में सफल गवाही देने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उसको, उसकी सुरक्षा के लिए पुलिस का गार्ड और साथ में, जिला चंपारण में 50 एकड़ जमीन भी इनाम स्वरूप दी थी।
घोष की गद्दारी से आक्रोशित बिहार के क्रांतिकारियों ने हाजीपुर के गांधी आश्रम में एक बैठक की थी और वहां उसको मौत के घाट उतारने की कार्य योजना बनाई गयी थी। वहां बिहार के एक मशहूर क्रन्तिकारी, 'योगेन्द्र शुक्ल', जो की HSRA के संस्थापक सदस्य और चंद्रशेखर आज़ाद के मित्र भी थे, के भांजे, 'बैकुंठ शुक्ल' इस कार्य को करने के लिए सामने आगये और अपने अग्रजो से इसका आग्रह किया था। 25 वर्षीय बैकुंठ शुक्ल, जिला मुफ्फरपुर के जलालपुर गाँव(अब जिला वैशाली में) के थे। उन्होंने गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया था और जेल भी गए थे। वहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी के बाद से उनका गांधी जी की नीतियों से मोह भंग हो गया था।गांधी इरविन के बीच हुए समझौते के तहत जब वो जेल से छोड़े गए तब वह जेल से निकल कर, HSRA के क्रांतिकारियों से जुड़ गए थे।
9 नवम्बर 1932 को जब फणीन्द्र नाथ घोष, जिला बेतिया के मीना बाजार में बैठे हुए थे तब उस पर बैकुंठ शुक्ल ने, एक प्राणधातक हमला किया जिससे फणीन्द्र नाथ घायल होकर 3 दिन बाद, अस्पताल में मर गया था। फणीन्द्र नाथ घोष को मालूम था की किसने उसको मार है लेकिन गद्दारी की हीन भावना से ग्रसित घोष ने, अपने डाईंग डिकलरेशन में किसी का भी नाम लिया था। बाद में बैकुंठ शुक्ल को गिरफ्तार करके, घोष की हत्या का मुकदमा चलाया गया और उनको 28 वर्ष की आयु में, 14 मई 1934 को गया के जेल में फांसी दे दी गयी थी।
इस प्रकार गांधी की नीतियों को दुत्कार कर बने क्रन्तिकारी बैकुंठ शुक्ल ने एक गद्दार फणीन्द्र नाथ घोष की हत्या करके, उसको गद्दारी की सज़ा दी थी।
(पूर्णः) :-...
Great information..super like...
ReplyDeleteThank you..
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ReplyDeleteHappy to read about Killing of Phanindra Nath Ghosh and great role of Shahid Baikunth Shukla.
ReplyDeleteBut I could not find anywhere that what happened to Jai Gopal? How did he die?
Phanindra Nath ghosh maternal place is maniktalla (Kolkata) but no where mentioned his paternal detail.
ReplyDeleteHe was not originally from Bihar ..
Ghosh and Banerjee are Bengali ...
Man Mohan banerBan was also member of HSRA , Who had taken command of Bihar
Can anyone tell phanindra Nath Ghosh paternal detail...
Or his father?