Friday, 21 October 2016

*मद्य शास्त्र*

मदिरापान को हमेशा एक अनुष्ठान या यज्ञ की भावना में ही लेना चाहिए। जैसे गृहस्थ पुरुष यज्ञ रोज न करके, केवल कभी-कभी ही करते हैं, वैसे ही मदिरापान भी केवल कुछ शुभ अवसरों पर ही करना उचित है।

मदिरापान केवल प्रसन्नता की स्थिति में ही करने का विधान है।

अवसाद की स्थिति में ऐसा यज्ञ करना सर्वथा वर्जित है, और जो इस नियम का उलंघन करता है, पाप का भागी होकर कष्ट भोगता है।

यज्ञकर्ता यज्ञ के लिए सवर्प्रथम शुभ दिन का चयन करे। *शुक्रवार, शनिवार और रविवार* इसके उपयुक्त दिन हैं, ऐसा शास्त्र में लिखा है किन्तु इसके अतिरिक्त कोई भी *अवकाश* का दिन भी शुभ होता है।

यद्यपि सप्ताह के अन्य दिनों में यज्ञ करना उचित नहीं है किन्तु अत्यंत प्रसन्नता के अवसरों में किसी भी दिन इस यज्ञ का आयोजन किया जा सकता है, ऐसा भी विधान है।

यज्ञ करने का निश्चय करने के बाद समय का निर्धारण करें। सामान्यतः यह यज्ञ *सायंकाल* या *रात्रि* में और अधिक से अधिक *मध्य रात्रि* तक ही करने का विधान है, रात्रि बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए।

अपवाद स्वरूप दिन में *छोटा-सा 'बियर रूपी'* अनुष्ठान किया जा सकता है, किन्तु प्रातःकाल में इस यज्ञ को करना पूर्णतः वर्जित है।

यज्ञ में स्थान का बहुत महत्त्व है, यद्यपि वर्जित तो नहीं है, लेकिन इस यज्ञ को किसी गृह में *न करना* ही उचित है। इस यज्ञ को करने का सर्वोत्तम स्थल *'क्लब'* अथवा *'बार'* या *'अहाता'* नामक पवित्र स्थान होता है। स्थान का चयन करते समय ध्यान दें कि वहाँ दुष्ट आत्माएँ यज्ञ में बाधा न डाल सकें।

ये भी ध्यान रहे की यज्ञ स्थल विधि सम्मत हो।

यज्ञ अकेले न कर, अन्य साधु जनों की संगत में ही करना ही उचित होता है। अकेले में किये गए यज्ञ से कभी पुण्य नहीं मिलता, बल्कि यज्ञ करने वाला *मद्य-दोष* को प्राप्त होकर, *'शराबी'* या *'बेवड़ा'* कहलाता है।

प्रसन्न मन से, शुभ क्षेत्र में बैठकर, साधुजनों की संगत में, मधुर संगीत रूपी मंत्रों के साथ, शास्त्रोचित रूप से किये गए मदिरापान के यज्ञ को करने वाला साधक, *'टुन्नता'* के असीम आनन्द को प्राप्त होता है।

ईस यज्ञ की एक महत्वपूर्ण बात, ये यज्ञ अपनी अर्धांगिनी के साथ न कर इस प्रायोजन हेतू पूर्ण रूप से प्रक्षिक्षत कन्याऔं जिन्हें बार बाला एवं साकी कहा जाता है  के साथ ही करना उचित होता है ।

मदिरापान के समय, यज्ञ अग्नि से भी अधिक महत्पूर्ण जठराग्नि को भी शांत करना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में भोज्य पदार्थ, जिसे *'चखना'* कहा जाता है, लेकर बैठना ही उचित है।

*पनीर, काजू, मूँगफली, नमकीन* या अपनी  इच्छानुसार कोई भी चखना लिया जा सकता है। कुछ निकृष्ट साधक तो सिर्फ *नमक* को ही पर्याप्त मानते हैं।

एक अन्य आवश्यक पदार्थ *सिगरेट* नामक अग्नि-दंडिका भी इस यज्ञ का महत्वपूर्ण अवयव है। जो मूर्ख पुरुष इस अग्नि-दंडिका का सम्मान नहीं करते, वे अग्नि के श्राप को प्राप्त हो, अनेक कष्टों को भोगते हैं।

*'मद्यसूत्रम'* नामक महाकाव्य में इसकी आधुनिक सेवन विधि विस्तार से समझाई गई है, जिसमें सर्वप्रथम खाली ग्लास लेकर अपने हाथ सीधे करते हुए उसमें 30ml मदिरा डालें फिर अपनी स्वेच्छानुसार सोडा या कोल्ड ड्रिंक का मिश्रण करें फिर अंत में बर्फ के एक दो टुकड़े डालें इसे एक *'पेग'* की उपाधि दी गई है।

अब उपस्थित साधकों की संख्या के बराबर ऐसे ही पेग तैयार करें व सबमें वितरित करें।

इसके बाद एक उँगली ग्लास में डालकर बाहर एक-दो बूंद छिड़कें।

यह क्यों किया जाना है, इसका उल्लेख किसी शास्त्र में भी नहीं है।

तत्पश्चात सभी भक्तजन अपने ग्लास हाथ में लेकर एक दूसरे के गिलास से हलके से छुएं और  *'चियर्स'* नामक मन्त्र का उच्च स्वर में उद्घोष करें। ध्यान रखें यदि इस मन्त्र का उदघोष नहीं हुआ तो आपका पुण्य असंभव है।

बहुत खुराक हो जाये तो पाचक की जरूरत होती है। इधर बहुत पढ़ा-लिखी करते रहे, अब पचाकर उल्टी करने का दौर शुरू होता है। आने वाले देश-काल में रेड लेबल+ब्लैक लेबल में सिंचित बाबावचनों से ओनलाईन जगत को सिंचित-समृद्ध किया जाएगा।

तो, हे सुजनों, इस फेस्टिव सीजन में सूजी अब पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहेगा। बाकी, हम बल्लेबाजद्वय चूँकि परिपक्वता का चरम हासिल कर चुके हैं, तमाम गेंदबाजों को बेहिसाब समस्या होने वाली है। दर्शक लोग दीर्घा में गेंदों की आवृत्ति गिनें।

(खबर समाप्त होती है। लाल बुझक्कड़ पैवेलियन छोर पर खड़े बल्लेबाज को बूझ ही लिये होंगे।) 😉

:- Raj Vasani.... 😉☺

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