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कुछ तारीख़ें होती हैं जिन्हें याद रखा जाता है...12 अप्रैल 2013...एक ऐसी ही यादगार तारीख़। जब हम अपने देस में बिस्तर पर पङे सेहत सुधार रहे थे तभी हमारे पुराने काॅलेज में पुरस्कार वितरण संपन्न हो गया था। बङी अज़ीब-सी दास्तां है हमारी...हर वो हरकतें हम करते रहे जो एक जेंटलमैन और आदर्श छात्र के लिए गुनाह माना जाता है...बावजूद काॅलेज में हर साल एक ट्राॅफी-सर्टिफिकेट की जोङी पर हमारा नाम लिखा जाता रहा। अब अपने नाम को लाना तो जरूरी था...आखिर इससे भी पगली की यादें जो जुङी थी। तलबगारों को मदिरा के लिए बस बहाना चाहिए होता है...और हम काॅलेज से बेहतरीन बहाना लेकर आए थे तो महफ़िल और दरबार की गुँजाइश खुद ही पैदा हो गया था। शराब की खासियत है...यह महकाती भी है और बहकाती भी है। हम बहक गये और पगली के झिङकी को किनारे धकेलता हमारा मोहब्बत जोर मारने लगा...अब तो भोलेनाथ भी हमें फोन करने से मना न करते। कई असफल कोशिशों के बाद आखिरकार फोन ने हमारे कानों में वो मीठा ज़हर उतारा जिसका असर खत्म करने के लिए हमने मुद्दतें ज़हर से गला तर करते गुजारा। वो रात भी अपने क़िस्मत पर इठलाया करती होगी...हम इतने बेबस, इतने दीन, इतने कमजोर कभी और न हुवे। वर्साय के राजमहल में गिङगिङाते कैसर को हम मात देते रहे पर पगली हमारे हरबात को अनसुनी करते रही। पगली ने उधर अपना फोन बंद किया...हम इधर पागल हाथी हो बैठे। फोन के पूरे इतिहास में उसका इतना नुकसान और किसी वजह ने न किया होगा जितना मोहब्बत ने किया है। हम भी फोन को तोङ-ताङकर थोङा ठंढक महसूस करने लगे...बाक़ी की ठंढक किचेन को तहस-नहस करके हासिल किया गया।
तकिये के बगल में रखा ट्राॅफी...लौंडे के मेहनत से तैयार और अब छत पर बिखरा मन्चूरियन-चावल...शराब की खाली-टूटी बोतलें...ऐश-ट्रे में पङे सिगरेट के अधजले फिल्टर्स...टूटे फोन में सलामत बैटरी और सिमकार्ड...दीवार पर टंगे एल.सी.डी और हमारे आदर्श नेताजी की तस्वीर...सब हमारे बेबसी पर खामोश पङे थे...और हम फ़िर से डायरी का एक पन्ना खराब कर रहे थे।
"गुनाह तेरा बस इतना-सा है राज,
प्यार तो किया पर परवाह नहीं की।"
(जारी...)
:- Raj Vasani... 😉😃