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एचएसआरऐ(HSRA) के कमांडर चन्द्रशेखर आज़ाद, जहां भारत की स्वतंत्रता और इसको हासिल करने के लिए बड़े पैशनेट थे वहीं वो व्यवहारिक भी थे। उन्हें इसका पूरा एहसास था की किसी भी सशस्त्र भूमिगत आंदोलन में साथियों का पुलिस द्वारा पकड़े जाने का हमेशा ही अंदेशा रहेगा और पुलिस की प्रतारणा के आगे कमजोर साथी टिक नही पाएंगे। इसलिए उन्होंने आदेश दिया था की जब कोई क्रन्तिकारी, कार्यवाही के दैरान पकड़ा जाये, तो वह अपने हिस्से की भूमिका स्वीकार कर ले लेकिन किसी भी हालत में अन्य साथियो और HSRA की गतिविधियों के बारे में मत बताये। इन आदेशो की अवेहलना करने वाले को मृत्यु दण्ड देने की चेतावनी भी दे रक्खी थी।
जब चन्द्रशेखर आज़ाद भूमिगत हुए थे तब उन्होंने सभी साथियों को छुप जाने को कहा था और कुछ विश्वनीय लोगो को बम और हथियारों को छिपाने का काम दे दिया था। इसी एक प्रयास में भुसावल रेलवे स्टेशन पर दो क्रन्तिकारी भगवानदास माहौर और सदाशिव राव मलकापुरा पकड़ लिए गए थे। ये सदाशिव राव वही है जिन्होंने बाद में चन्द्रशेखर आज़ाद की माँ को रक्खा था। इन दोनों के बारे में पुलिस को, जय गोपाल और एक दूसरे गवाह फणिचन्द्र ने, HSRA के सदस्य के रूप में बता दिया था।
भगवानदास और सदाशिव दोनों पर जलगांव में मुकदमा चलाया गया, जो अब 'भुसावल बम केस' के नाम से जाना जाता है। जब सदाशिव को पता चला की 21 फरवरी 1930 को उनके विरुद्ध गवाही देने लौहोर पुलिस के साथ, मुखबिर जयगोपाल और फणीन्द्र घोष आने वाले है तो इन दोनों को अदालत में ही मारने का मन बनाया था। उन्होंने, उनका निः शुल्क मुकदमा लड़ रहे, झाँसी के प्रसिद्ध वकील श्री र. वि. धुलेकर, के माध्यम से, चन्द्रशेखर आजाद के पास यह संदेश भिजवाया। तब आजाद ने अपने एक फरार क्रांतिकारी साथी भगवतीचरण वोहरा को वकील के वेश में उनके पास भेजकर कहलवाया कि 'गोली चलाने का काम भगवानदास करेंगे क्योंकि एक ही मामले में दो आदमी फाँसी पाएँ, यह ठीक नहीं रहेगा।'
योजनानुसार 20 फरवरी की शाम को, सदाशिवराव के बड़े भाई शंकर राव मलकापुर, चावल के बड़े कटोरे के नीचे एक भरी हुई पिस्तोल रखकर, जेल में उन लोगों को दे आये। अगले दिन अदालत में भोजनावकाश के समय भगवानदास माहौर ने जयगोपाल और फणीन्द्र पर हमला कर दिया, जिसमें जयगोपाल को गोली लगी और वह घायल हो कर गिर गया लेकिन वो मरा नहीं था। भगवानदास उस पर और गोली उस दागते लेकिन उनकी पिस्तौल जाम हो गई थी।
इस घटना के बाद जय गोपाल सहित सभी गद्दारो की सुरक्षा, ब्रिटिश पुलिस ने बढ़ा दी, जिससे और हमले करने में क्रन्तिकारी सफल नही हो पाये थे।
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दिलवाने में मदद करने के ऐवज मे ब्रिटश सरकार ने 1931 में गद्दार, जय गोपाल को 20,000 रुपये इनाम में दिए थे। उसके बाद जय गोपाल कहा इतिहास में दफन हो गया, मुझे नही पता चला है।
मैंने बहुत तलाश की लेकिन जय गोपाल के आगे के जीवन के बारे में कुछ भी लिखा नही मिला है। यदि किसी के पास कोई सुचना हो तो मुझे अवश्य बताइयेगा।
(क्रमशः) :-